"बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है;
यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है;
तड़प उठता हूँ दर्द के मारे, ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है;
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ;
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।
अभी काँच हूँ इसलिए सबको चुभता हूँ, ♦जिस_दिन☝🕵 आइना बन _जाऊँगा , उस दिन पूरी दुनियाँ देखेगी ...!!
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